हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , आपका नाम अब्दुल्लाह इब्ने उमैर इब्ने अब्दे कै़स इब्ने अलीम इब्ने जनाबे कलबी अलिमी था। आप कबीला-ऐ-अलीम के चश्मों चराग थे आप पहलवान और निहायत बहादुर थे।
कूफे के मोहल्ले हमदान में करीब चाहे जुहद मकान बनाया था और उसी में रहते थे। मुकामे नखला में लश्कर को जमा होता देख कर लोगो से पूछा लश्कर क्यों जमा हो रहा है कहा गया हुसैन इब्ने अली अलै० से लड़ने के लिए ये सुन कर आप घबराए और बीवी से कहने लगे की अरसा-ऐ-दराज से मुझे तम्मना थी की कुफ्फार से लड़ कर जन्नत हासिल करूँ।
लो आज मौका मिल गया है हमारे लिए यही बेहतर है की यहाँ से निकल चले और इमाम हुसैन की हिमायत में लड़ कर शर्फे शहादत से मुशर्रफ हो और साथ ही साथ हमराह जाने की दरख्वास्त भी पेश कर दी।
अब्दुल्लाह ने मंज़ूर किया और दोनों रात को छिप कर इमाम हुसैन की खिदमत में जा पहुचे और सुबहे आशूर जंगे मग्लूबा में ज़ख़्मी होकर शहीद हो गए।
अल्लामा समावी लिखते है की उस अज़ीम जंग में जब जनाबे अब्दुल्लाह की बीवी ने अपने चाँद को लिथड़ा हुआ देखा तो दौड़ कर मैदान में जा पहुची और उन के चेहरे से खून व ख़ाक साफ़ करने लगी इसी दौरान में शिमरे मलऊन के गुलाम रुस्तम लईन ने उस मोमिना के सर पर गुर्ज मार कर उसे भी शहीद कर दिया।